उपलक द्रष्टिए जोनारने नीचेनी बे शंका थवानो संभव
छेः –
१. आवा कथन सांभळवाथी के वांचवाथी लोकोने घणुं
नुकसान थवा संभवे छे (२) हाल लोको जे कांई व्रत, पचखाण,
प्रतिक्रमणादि क्रिया करे छे ते छोडी देशे.
तेनो खुलासो नीचे प्रमाणे छेः –
सत्यथी कोई पण जीवने नुकसान थाय एम कहेवुं ते
भूलभरेलुं छे अर्थात् असत् कथनथी लोकोने लाभ थाय एम
मानवा बराबर थाय छे. सत् सांभळवाथी के वांचवाथी जीवोने
कदी नुकसान थाय ज नहि अने व्रत – पचखाण करनाराओ ज्ञानी
छे के अज्ञानी छे ते जाणवानी जरूर छे. जो तेओ अज्ञानी होय
तो तेने साचां व्रतादि होतां ज नथी तेथी ते छोडवानो प्रश्न
ज नथी. जो व्रत करनार ज्ञानी हशे तो छद्मस्थ दशामां ते व्रत
छोडी अशुभमां जशे तेम मानवुं न्यायविरुद्ध छे. परंतु एम बने
के ते क्रमे क्रमे शुभभावने टाळी शुद्धने वधारे. पण ते तो लाभनुं
कारण छे, नुकसाननुं कारण नथी. माटे सत्य कथनथी कोईने
नुकसान थाय नहि. आ कथननुं मनन करवानी खास जरूर छे.
जिज्ञासुओ कंई विशेष स्पष्ट खुलासाथी समजी शके ते वात
लक्षमां राखीने ब्रह्मचारी भाईश्री गुलाबचंदजीए यथाशक्य
शुद्धि – वृद्धि करी छे.
कार्तिक सुद १५, सं. २०१८
सोनगढ (सौराष्ट्र)रामजी माणेकचंद दोशी (प्रमुख)
श्री दि. जैन स्वा० मंदिर ट्रस्ट
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