पण अज्ञानी तेनाथी धर्म थशे एम माने छे अने ज्ञानीने
बुद्धिमां ते हेय होवाथी तेनाथी कदी धर्म न थाय एम ते
माने छे.
४. आ उपरथी धर्मीने शुभ भाव होतो ज नथी एम
समजवुं नहीं, पण शुभ भावने धर्म के तेथी क्रमे क्रमे धर्म
थशे एम ते मानतो नथी – केम के अनंत वीतरागोए तेने
बंधनुं कारण कह्युं छे.
५. एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई करी शके नहीं,
परिणमावी शके नहीं, प्रेरणा करी शके नहीं, लाभ – नुकसान
करी शके नहीं, प्रभाव पाडी शके नहीं, असर, मदद के
उपकार करी शके नहीं, मारी – जीवाडी शके नहीं. एवी दरेक
द्रव्य-गुण-पर्यायनी संपूर्ण स्वतंत्रता अनंत ज्ञानीओए
पोकारी – पोकारीने कही छे.
६. जिनमतमां तो एवी परिपाटी छे के पहेलां सम्यक्त्व
होय पछी व्रत होय; हवे सम्यक्त्व तो स्व-परनुं श्रद्धान थतां
थाय छे, तथा ते श्रद्धान द्रव्यानुयोगनो अभ्यास करतां थाय छे;
माटे पहेलां द्रव्यानुयोग अनुसार श्रद्धान करी सम्यग्द्रष्टि थवुं.
७. पहेले गुणस्थाने जिज्ञासु जीवोने शास्त्रनो अभ्यास,
वांचन – मनन, ज्ञानी पुरुषनो धर्मोपदेश सांभळवो, निरंतर
तेमना समागममां रहेवुं, देवदर्शन, पूजा, भक्ति, दान वगेरे
शुभ भावो होय छे; परंतु पहेले गुणस्थाने साचां व्रत, तप
वगेरे होतां नथी.
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