Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 13 (Dhal 4).

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कर प्रमाद जल भूमि, वृक्ष पावक न विराधै,
असि धनु हल हिंसोपकरण नहिं दे यश लाधै;
रागद्वेष-करतार, कथा कबहूं न सुनीजै,
और हु अनरथदंड,-हेतु अघ तिन्हैं न कीजै. १३.
अन्वयार्थ१. (काहूकी) कोईनी (धनहानि) धनना
नाशनो, (किसी) कोईनी (जय) जीतनो [अगर] (हार) कोईनी
हारनो (न चिन्तै) विचार न करवो [तेने अपध्यान अनर्थदंडव्रत
कहे छे.] २. (वनज) व्यापार अने (कृषीतैं) खेतीथी (अघ) पाप
(होय) थाय छे तेथी (सो) एनो (उपदेश) उपदेश (न देय) न
देवो [तेने पापोपदेश अनर्थदंडव्रत कहेवाय छे.] ३. (प्रमाद कर)
प्रमादथी [प्रयोजन वगर] (जल) जलकायिक (भूमि) पृथ्वीकायिक
(वृक्ष) वनस्पतिकायिक (पावक) अग्निकायिक [अने वायुकायिक]
जीवोनो (न विराधै) घात न करवो [ते प्रमादचर्या अनर्थदंडव्रत
कहेवाय छे.] ४. (असि) तलवार (धनु) धनुष्य (हल) हळ
[वगेरे] (हिंसोपकरण) हिंसा थवामां कारणभूत पदार्थोने (दे)
आपीने (यश) जश (नहि लाधै) न लेवो [ते हिंसादान
१२० ][ छ ढाळा