दिग्व्रत कहे छे. तेमां दिशाओनी मर्यादा नक्की करवामां आवती
होवाथी तेने ‘दिग्व्रत’ कहेवाय छे. ११.
देशव्रत (देशावगाशिक) नामना गुणव्रतनुं लक्षण
ताहूमें फिर ग्राम गली गृह बाग बजारा,
गमनागमन प्रमाण ठान, अन सकल निवारा. १२. (पूर्वार्ध)
अन्वयार्थः — (फिर) पछी (ताहूमें) तेमां [कोई प्रसिद्ध-
प्रसिद्ध] (ग्राम) गाम (गली) शेरी (गृह) मकान (बाग) बगीचा
अने (बजारा) बजार सुधी (गमनागमन) जवा-आववानुं
(प्रमाण) माप (ठान) राखीने (अन) अन्य-बीजा (सकल)
बधानो (निवारा) त्याग करवो [तेने देशव्रत अथवा
देशावगाशिकव्रत कहे छे.]
भावार्थः — दिग्व्रतमां जिंदगी सुधी करवामां आवेली जवा-
आववाना क्षेत्रनी मर्यादामां पण (घडी, कलाक, दिवस, महिना
वगेरे काळना नियमथी) कोई प्रसिद्ध गाम, रस्तो, मकान अने
बजार सुधी जवा-आववानी मर्यादा करीने तेनाथी अधिक हदमां
न जवुं ते देशव्रत कहेवाय छे. (१२ पूर्वार्ध.)
अनर्थदंMव्रतना भेद अने तेनुं लक्षण
काहूकी धनहानि, किसी जय हार न चिन्तै,
देय न सो उपदेश, होय अघ वनज-कृषीतैं. १२. (उत्तरार्ध)
(२) निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक प्रथमना बे कषायनो अभाव थयो
होय ते जीवने साचा अणुव्रत होय छे, निश्चय सम्यग्दर्शन न होय
तेना व्रतने सर्वज्ञे बाळव्रत (अज्ञानव्रत) कहेल छे.
चोथी ढाळ ][ ११९