परिग्रह (थोरो) मर्यादित (राखै) राखवो [ते परिग्रहपरिमाणा-
णुव्रत छे]. (दश दिश) दश दिशाओमां (गमन) जवा-आववानी
(प्रमाण) मर्यादा (ठान) राखीने (तसु) तेनी (सीमा) हदनुं (न
नाखै) उल्लंघन न करवुं [ते दिग्व्रत नामनुं व्रत छे.]
वस्तु सिवायनी-पोतानी मालिकी न होय एवी-पारकी वस्तुने
तेना मालिके दीधा वगर न लेवी [तथा उपाडीने बीजाने न देवी]
तेने अचौर्याणुव्रत कहे छे. पोतानी परणेली स्त्री सिवाय बीजी
सर्व स्त्रीओथी विरक्त रहेवुं ते ब्रह्मचर्याणुव्रत छे. [पुरुषोए
अन्य स्त्रीओने माता, बहेन अने पुत्री समान मानवी अने
स्त्रीओए पोताना स्वामी सिवाय सर्व पुरुषोने पिता, भाई अने
पुत्र समान समजवा.]
(मर्यादा) करीने तेनाथी वधारेनी इच्छा न करवी तेने
मानवामां आवे छे तेनो आ व्रतोमां एकदेश (स्थूळपणे) त्याग
करवामां आव्यो छे अने तेने लीधे ज ते अणुव्रत कहेवाय छे.