जन्म-मरण धारण करीने भटके छे. २.
आ ग्रंथनी प्रमाणिकता अने निगोदनुं दुःख
तास भ्रमनकी है बहु कथा, पै कछु कहूं कही मुनि यथा;
काल अनन्त निगोद मंझार, बीत्यो एकेन्द्री तन धार. ३.
अन्वयार्थः — (तास) आ संसारमां (भ्रमनकी) भटकवानी
(कथा) कथा (बहु) मोटी (है) छे (पै) तोपण (यथा) जेवी
(मुनि) पूर्वाचार्योए (कही) कही छे (यथा) ते प्रमाणे हुं पण
(कछु) थोडी (कहुं) कहुं छुं [के आ जीवनो] (निगोद मंझार)
निगोदमां (एकेन्द्री) एकेन्द्रिय जीवना (तन) शरीर (धार)
धारण करी (अनन्त) अनंत (काल) काळ (बीत्यो) वीत्यो छे –
पसार थयो छे.
भावार्थः — संसारमां जन्म-मरण धारण करवानी कथा
बहु मोटी छे. तोपण जे प्रकारे पूर्वाचार्योए पोताना बीजा
ग्रंथोमां कही छे, ते प्रकारे हुं (दौलतराम) पण आ ग्रंथमां
थोडीक कहुं छुं. आ जीवे, नरकथी पण निकृष्ट निगोदमां एक
इन्द्रिय जीवना शरीर धारण कर्यां अर्थात् साधारण-
वनस्पतिकायमां ऊपजी त्यां अनंत काळ पसार कर्यो छे. ३.
निगोदनुं दुःख अने त्यांथी नीकळी प्राप्त करेल पर्यायो
एक श्वासमें अठदस बार, जन्म्यो मर्यो भर्यो दुखभार;
निकसि भूमि जल पावक भयो, पवन प्रत्येक वनस्पति थयो. ४.
अन्वयार्थः — [निगोदमां आ जीव] (एक श्वासमें) एक
पहेली ढाळ ][ ५