Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 2 (Dhal 1).

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गुरु शिक्षा सांभळवानो आदेश अने
संसार-परिभ्रमणनुं कारण
ताहि सुनो भवि मन थिर आन, जो चाहो अपनो कल्यान;
मोह-महामद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादि. २.
अन्वयार्थ(भवि) हे भव्य जीवो! (जो) जो (अपनो)
पोतानुं (कल्यान) हित (चाहो) चाहता हो [तो] (ताहि) गुरुनी
ते शिक्षा (मन) मनने (थिर) स्थिर (आन) करीने (सुनो)
सांभळो [के आ संसारमां दरेक प्राणी] (अनादि) अनादि काळथी
(मोह-महामद) मोहरूपी जलद दारू (पियो) पीने, (आपको)
पोताना आत्माने (भूल) भूली (वादि) व्यर्थ (भरमत) भटके छे.
भावार्थहे भद्र प्राणीओ! जो पोतानुं हित चाहता
हो तो, पोतानुं मन स्थिर करीने आ शिक्षा सांभळो. जेवी
रीते कोई दारूडियो दारू पीने, नशामां चकचूर थईने, ज्यां
त्यां गोथां खाई पडे छे तेवी ज रीते जीव अनादिकाळथी
मोहमां फसी, पोताना आत्माना स्वरूपने भूली चारे गतिओमां
४ ][ छ ढाळा