छे छतां पण तेना शरीर पाछा मळी जवाथी
अने अम्बरीष वगेरे जातिना असुरकुमार देव पहेली, बीजी अने
त्रीजी नरक सुधी जईने त्यांना तीव्र दुःखी नारकीओने, पोताना
अवधिज्ञानथी वेर बतावीने अथवा क्रूरता अने कुतूहलथी
अंदरोअंदर लडावी मारे छे अने पोते आनंदित थाय छे. ते
नारकी जीवोने एटली बधी तरस लागे छे के जो मळे तो एक
महासागरनुं पाणी पण पी जाय तोपण तरस छीपी शकती नथी;
परंतु पीवाने पाणीनुं एक टीपुं पण मळतुं नथी. ११.
तोपण (भूख) भूख (न मिटै) मटी शके नहि, [परन्तु खावाने]
(कण) एक दाणो पण (न लहाय) मळतो नथी. (ये दुख) एवुं
दुःख (बहु सागर लौं) घणा सागरोपम काळ सुधी (सहै) सहन
अंशे छूटो छूटो वींखराई जाय छे. फरी एकठो करी देवाथी पोते
स्वयं एक पिंड थई जाय छे.