छे के ठंडीथी हाथ ठुंठवाई गया. हीमथी झाड अथवा अनाज बळी
गयुं वगेरे; एटले के लोढानी अंदर एकदम उग्र ठंडीना कारणे
चीकणाई ओछी थवाथी तेनो स्कंध वीखराई जाय छे. १०.
नरकमां अन्य नारकीओ, असुरकुमार तथा
प्यासनां दुःखो
तिल-तिल करैं देहके खंड, असुर भिडावैं दुष्ट प्रचण्ड;
सिन्धुनीरतैं प्यास न जाय, तोपण एक न बूंद लहाय. ११.
अन्वयार्थ ः — [ए नरकमां नारकी जीव एकबीजाना] (देहके)
शरीरना (तिल-तिल) तलना दाणा जेवडां (खंड) टुकडां (करैं) करी
नांखे छे. अने (प्रचंड) अत्यंत (दुष्ट) क्रूर (असुर) असुरकुमार
जातिना देव, [एकबीजा साथे] (भिडावैं) लडावे छे; [तथा एटली]
(प्यास) तरस [लागे छे के] (सिन्धुनीर तैं) समुद्रभरना पाणी
पीवाथी पण (न जाय) छीपी शकती नथी (तो पण) छतां (एक बूंद)
एक टीपुं पण (न लहाय) मळी शकतुं नथी.
भावार्थ ः — ते नरकोमां नारकी एकबीजाने दुःख आप्यां
१४ ][ छ ढाळा