माफक (विदारैं) फाडी नाखे छे. [अने] (तत्र) त्यां [ए नरकमां]
(ऐसी) एवा प्रकारनी (शीत) ठंडी (अने) (उष्णता) गरमी
(थाय) थाय छे [के] (मेरु समान) मेरु जेवा पर्वतनी बराबर
(लोह) लोढानो गोळो पण (गलि) गळी जई (जाय) शके छे.
भावार्थ ः — ए नरकमां घणांय सेमरनां झाडो छे, तेना
पांदडां तरवारनी धार जेवां तीक्ष्ण छे. ज्यारे दुःखी नारकी छाया
मळवानी इच्छाथी ते झाड नीचे जाय छे, त्यारे ते झाडना
पांदडांओ तेनी उपर पडी, ते नारकीओना शरीरने चीरी नाखे
छे. अने ए नरकोमां एटली गरमी थाय छे के एक लाख
जोजननी ऊंचाईवाळा सुमेरु पर्वतनी बरोबर लोढानो पिंड पण
१ओगळी जाय छे, तथा एटली ठंडी पडे छे के सुमेरु समान
लोढानो गोळो पण गळी२ जाय छे. जेवी रीते लोकोमां कहेवाय
१मेरुसम लोहपिंडं, सीदं उण्हे विलम्मि पक्खितं ।
ण लहदि तलप्पदेशं, विलीयदे मयणखंडं वा ।।
अर्थ ः — जेवी रीते गरमीमां मीण पीगळी जाय छे, (पाणीनी माफक
चालवा लागे छे) तेवी रीते सुमेरु बराबर लोढानो गोळो गरम बिलनी अंदर
फेंकवामां आवे तो वचमां ज ओगळवा मांडे छे.
२मेरुसम लोहपिंडं, उण्हं सीदे विलम्मि पक्खितं ।
ण लहदि तलं पदेशं, विलीयदे लवणखण्डं वा ।।
(त्रिलोकप्रज्ञप्ति द्वितीय महाधिकार)
अने जेवी रीते ठंड-वरसादमां मीठुं ओगळी जाय छे – पाणी थई जाय छे तेवी
रीते सुमेरु समान लोढानो गोळो ठंडा बिलोमां फेंकवामां आवे तो वचमां ज ओगळवा
लागे छे. पहेली बीजी त्रीजी अने चोथी नरकनी भूमिओ गरम छे. पांचमी नरकमां
उपरनी भूमि गरम तथा नीचे त्रीजो भाग ठंडी अने छठ्ठी तथा सातमीनी भूमि ठंडी छे.
पहेली ढाळ ][ १३