रहेवाथी (त्रास) दुःख (पायो) पाम्यो [अने] (निकसत)
नीकळती वखते (जे) जे (घोर) भयंकर (दुख) दुःख (पायो)
पाम्यो (तिनको) ते दुःखोने (कहत) कहेतां (ओर) अन्त
(न आवे) आवी शकतो नथी.
भावार्थ ः — मनुष्यगतिमां पण आ जीव नव महिना सुधी
तो माताना पेटमां ज रह्यो, त्यां पण शरीर संकोचीने रहेवानुं
होवाथी घणुं दुःख पाम्यो, जेनुं वर्णन पण थई शकतुं नथी.
कोई कोई वखते माताना पेटमांथी नीकळती वखते, मातानुं
अथवा पुत्रनुं अथवा बन्नेनुं मरण पण थई जाय छे. १३.
मनुष्यगतिमां बाल्य, युवा, वृद्धावस्थानां दुःखो
बालपनेमें ज्ञान न लह्यो, तरुण समय तरुणी-रत रह्यो;
अर्धमृतकसम बूढापनों, कैसे रूप लखै आपनो. १४.
अन्वयार्थ ः – [मनुष्यगतिमां जीव] (बालपनेमें) बाळपणामां
(ज्ञान) ज्ञान (न लह्यो) पाम्यो नहि [अने] (तरुण समय)
जुवानीमां (तरुणीरत) जुवान स्त्रीमां लीन (रह्यो) रह्यो [अने]
(बूढापनों) घडपण (अर्धमृतकसम) अधमूउं जेवुं [रह्युं; आवी
पहेली ढाळ ][ १७