Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 15 (Dhal 1).

< Previous Page   Next Page >


Page 18 of 205
PDF/HTML Page 40 of 227

 

background image
हालतमां] (कैसे) केवी रीते [जीव] (आपनो) पोतानुं (रूप)
स्वरूप (लखै) विचारे-देखे.
भावार्थ मनुष्यगतिमां पण आ जीव बाल्यावस्थामां
विशेष ज्ञान पण न पाम्यो, जुवानीमां ज्ञान तो पाम्यो पण
स्त्रीना मोह (विषयभोग)मां भूली गयो अने घडपणमां
इन्द्रियोनी शक्ति घटी गई अथवा मरणपर्यंत पहोंचे तेवो रोग
लागु पड्यो के जेथी अधमुआ जेवो पड्यो रह्यो. आवी हालतमां
आ प्राणी त्रणे अवस्थामां आत्मस्वरूपनुं दर्शन (पिछाण) न
करी शक्यो. १४.
देवगतिमां भवनत्रिकनुं दुःख
कभी अकामनिर्जरा करै, भवनत्रिकमें सुर-तन धरै;
विषय-चाह-दावानल दह्यो, मरत विलाप करत दुख सह्यो. १५.
अन्वयार्थ [आ जीवे] (कभी) कोई वखत (अकाम-
निर्जरा) अकामनिर्जरा (करै) करी [तो मर्या पछी] (भवनत्रिक)
भवनवासी व्यन्तर अने ज्योतिषीमां (सुर-तन) देवपर्याय (धरै)
धारण कर्या, [परंतु त्यां पण] (विषयचाह) पांचे इन्द्रियोना
१८ ][ छ ढाळा