छे, आ अजीवतत्त्वनी भूल छे.
३. मिथ्यात्व, रागादि प्रगट दुःख देनारां छे, छतां तेनुं
सेवन करवामां सुख माने छे. आ आस्रवतत्त्वनी भूल छे.
४. शुभने लाभदायक अने अशुभने नुकसानकारक ते
माने छे, पण तत्त्वद्रष्टिए ते बन्ने नुकसानकारक छे एम
ते मानतो नथी – आ बंधतत्त्वनी भूल छे.
५. सम्यग्ज्ञान तथा ते पूर्वकनो वैराग्य जीवने सुखरूप
छे, छतां ते पोताने कष्ट आपनार अने न समजाय एवां
छे – एम जीव माने छे – ते संवरतत्त्वनी भूल छे.
६. शुभाशुभ इच्छाओने नहि रोकतां, इन्द्रियोना विषयो
प्रत्ये इच्छा कर्या करे छे ते निर्जरातत्त्वनी भूल छे.
७. सम्यग्दर्शनपूर्वक ज पूर्ण निराकुळता प्रगट थाय छे,
अने ते ज खरुं सुख छे – एम न मानतां, बाह्य वस्तुओनी
सगवडोथी सुख मळी शके एम जीव माने छे ते मोक्षतत्त्वनी
भूल छे.
उपरनी भूलोनुं फळ
आ ग्रंथनी पहेली ढाळमां आ भूलोनुं फळ बताव्युं छे.
आ भूलोनुं फळ जीवने समये समये अनंत दुःखनो
भोगवटो छे; एटले के चारे गतिओमां – मनुष्य, देव, तिर्यंच
के नारक तरीके जन्मी – मरी दुःख भोगवे छे. लोको
देवगतिमां सुख माने छे पण ते भ्रमणा छे – खोटुं छे. गाथा
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