अवस्था टाळी बेइन्द्रियथी पंचेन्द्रिय भाग्ये ज थाय छे; अने
तेमां पण मनुष्यपणुं प्राप्त करवुं तो अति
दुःख टाळी शके. परंतु मनुष्यभवमां पण कां तो धर्मनो यथार्थ
विचार करतो नथी, अगर तो धर्मने नामे चालती अनेक
मिथ्या मान्यताओमांथी कोई ने कोई खोटी मान्यताने ग्रहण
करे छे अने कुदेव, कुगुरु तथा कुशास्त्रमां ते फसाई जाय
छे; अथवा तो ‘बधा धर्मो एक छे’ एम उपलक द्रष्टिए
मानी लईने बधानो समन्वय करवा लागे छे अने पोतानी
ए भ्रमणावाळी बुद्धिने, विशाळबुद्धि मानीने अभिमान सेवे
छे; कदी ते जीव सुदेव, सुगुरु अने सुशास्त्रनुं बाह्य स्वरूप
समजे तोपण पोतानुं खरुं स्वरूप समजवा जीव यथार्थ प्रयास
करतो नथी; तेथी ते फरी फरीने संसारचक्रमां रखडी पोतानो
मोटामां मोटो काळ निगोद