Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Mithyatvanu Mahapap Vastunu Swaroop.

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मिथ्यात्वनुं महापाप
उपर कह्युं ते बधानुं मूळ कारण पोताना स्वरूपनी जीवने
भ्रमणा छे. परनुं हुं करी शकुं, पर मारुं करी शके, परथी मने
लाभ थाय, परथी मने नुकशान थाय
एवी मिथ्या मान्यतानुं
नित्य अपरिमित महापाप दरेक क्षणे जीव सेव्या करे छे; ते
महापापने शास्त्रीय परिभाषामां मिथ्यादर्शन कहेवामां आवे छे.
तेना फळ तरीके क्रोध, मान, माया, लोभ जे परिमित पाप छे
तेने तीव्र के मंदपणे सेवे छे. जीवो क्रोधादिकने पाप गणे छे,
पण तेनुं मूळियुं मिथ्यादर्शनरूप महापाप छे तेने तेओ
ओळखता नथी, तो पछी तेने टाळे क्यांथी?
वस्तुनुं स्वरूप
वस्तुस्वरूप कहो के जैनधर्म कहो, ते बंने एक ज छे.
तेनो विधि एवो छे केपहेलां मोटुं पाप छोडावी पछी नानुं
पाप छोडावे छे, माटे महापाप शुं अने नानुं पाप शुं ते
प्रथम समजवानी खास जरूर छे.
जुगार, २मांसभक्षण, ३मदिरापान, ४वेश्या-
गमन, ५शिकार, ६परनारीनो संग अने ७चोरी.
सात जगतमां मोटा व्यसनो गणाय छे, पण ए साते व्यसनो
करतां मिथ्यात्व ते महापाप छे, तेथी तेने प्रथम छोडाववानो
जैनधर्मनो उपदेश छे; छतां उपदेशको, प्रचारको अने
अग्रेसरोनो मोटो भाग मिथ्यात्वना यथार्थ स्वरूपथी अजाण छे;
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