क्यांथी आपी शके? तेओ ‘पुण्य’ने धर्ममां सहायक मानी तेना
उपदेशनी मुख्यता करे छे; ए प्रमाणे धर्मने नामे महा
मिथ्यात्वरूपी पापने अव्यकत रीते पोषे छे. आ भूल जीव टाळी
शके ते माटे सम्यग्दर्शन अने मिथ्यादर्शन तथा सम्यग्ज्ञान अने
मिथ्याज्ञाननुं स्वरूप आ ग्रंथनी त्रीजी अने चोथी ढाळमां आपेल
छे. आनो अर्थ एवो नथी के शुभने बदले अशुभभाव जीवे
करवा; पण शुभ भावने धर्म के धर्ममां सहायक मानवो नहीं,
नीचली अवस्थामां शुभ भाव थया विना रहे नहीं, पण तेने
धर्म मानवो ते मिथ्यात्वरूप महापाप छे.
भाव थाय छे तेने ते धर्म मानता नथी पण बंधनुं कारण माने
छे, जेटलो राग टळे छे तथा सम्यग्दर्शन
छे तेथी तेमने आ खरी भावना होती नथी.