नहि त्यारे तेने शुभभावरूप अणुव्रत के महाव्रत होय छे,
पण तेमां थता शुभ भावने ते धर्म मानता नथी; ते वगेरेनुं
स्वरूप छठ्ठी ढाळमां कह्युं छे.
‘निश्चय’ कहेवामां आवे छे, आत्मानो ते त्रिकाळी सामान्य
स्वभाव द्रव्यार्थिकनये आत्मानुं स्वरूप छे, त्रिकाळी शुद्धता
तरफना वलणथी जीवनो जे शुद्ध पर्याय प्रगटे छे ते शुद्ध
पर्यायने ‘व्यवहार’ कहेवामां आवे छे, ते सद्भूत व्यवहार
छे. अने अवस्थामां जे विकार के रागनो अंश रहे छे ते
पर्याय जीवनो असद्भूत व्यवहार छे; असद्भूत व्यवहार
जीवनुं परमार्थ स्वरूप नहि होवाथी टळी शके छे, अने तेथी
निश्चयनये ते जीवनुं स्वरूप नथी एम समजवुं.