माने छे तथा ते करतां करतां भविष्यमां निश्चय (शुद्धभाव
होय छे. कोई वखते निश्चय (शुद्ध भाव) मुख्यपणे होय छे
कोई वखते व्यवहार (शुभभाव) मुख्यपणे होय छे. आनो
अर्थ एवो छे के सम्यग्द्रष्टि जीव पोताना स्वरूपमां स्थिर रहे
तेनुं नाम निश्चयपर्याय (शुद्धता) छे, अने तेमां स्थिर रही
शके नहि त्यारे स्वलक्षे अशुभभाव टाळी शुभमां रहे अने
ते शुभने धर्म माने नहीं, तेने व्यवहारपर्याय (शुभपर्याय)
कहेवामां आवे छे; केमके ते जीवने शुभपर्याय थोडा वखतमां
टळी शुद्धपर्याय प्रगटे छे; आ अपेक्षा लक्षमां राखी व्यवहार
साधक अने निश्चय साध्य
क्रमे क्रमे शुद्ध पर्याय थतो जाय. आ बन्ने पर्यायो होवाथी
ते पर्यायार्थिकनयनो विषय छे. आ ग्रंथमां केटलेक ठेकाणे
निश्चय अने व्यवहार एवा शब्दो वापरवामां आव्या छे, त्यां
तेनो आ अर्थ समजवो. व्यवहार (शुभभाव)नो व्यय ते
साधक अने निश्चय (शुद्धभाव)नो उत्पाद ते साध्य एवो तेनो
अर्थ थाय छे; तेने टूंकामा ‘व्यवहार साधक, निश्चय साध्य’
एम पर्यायार्थिकनये कहेवामां आवे छे.