मिथ्याज्ञान सहित (प्रवृत्त) प्रवृत्ति करे छे (ताको) तेने
(मिथ्याचरित्त) अगृहीत मिथ्याचारित्र (जानो) समजो. (यों) आ
प्रमाणे (निसर्ग) अगृहीत (मिथ्यात्वादि) मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान
अने मिथ्याचारित्रनुं [वर्णन करवामां आव्युं.] (अब) हवे (जे)
जे (गृहीत) गृहीत [मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र] छे (तेह) तेने
(सुनिये) सांभळो.
अगृहीत मिथ्याचारित्र कहेवामां आवे छे. आ त्रणेयने दुःखना
कारण जाणी तत्त्वज्ञान वडे तेनो त्याग करवो जोईए. ८.
अंतर रागादिक धरैं जेह, बाहर धन-अंबरतैं सनेह. ९.
घणां लांबा समय सुधी (दर्शनमोह) मिथ्यादर्शन (एव) ज (पोषै)
पोषे छे. (जेह) जे (अंतर) अंतरमां (रागादिक) मिथ्यात्व-राग-
द्वेष आदि (धरैं) धारण करे छे अने (बाहर) बहारथी (धन