Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 9-10 (poorvardh) (Dhal 2).

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बीजी ढाळ ][ ४१
अन्वयार्थ(जो) जे (विषयनिमें) पांच इन्द्रियोना
विषयोमां (इन जुत) अगृहीत मिथ्यादर्शन अने अगृहीत
मिथ्याज्ञान सहित (प्रवृत्त) प्रवृत्ति करे छे (ताको) तेने
(मिथ्याचरित्त) अगृहीत मिथ्याचारित्र (जानो) समजो. (यों) आ
प्रमाणे (निसर्ग) अगृहीत (मिथ्यात्वादि) मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान
अने मिथ्याचारित्रनुं [वर्णन करवामां आव्युं.] (अब) हवे (जे)
जे (गृहीत) गृहीत [मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्र] छे (तेह) तेने
(सुनिये) सांभळो.
भावार्थअगृहीत मिथ्यादर्शन अने अगृहीत मिथ्या-
ज्ञान सहित पांच इन्द्रियोना विषयो प्रत्ये प्रवृत्ति करवी तेने
अगृहीत मिथ्याचारित्र कहेवामां आवे छे. आ त्रणेयने दुःखना
कारण जाणी तत्त्वज्ञान वडे तेनो त्याग करवो जोईए. ८.
गृहीत-मिथ्यादर्शन अने कुगुरुनां लक्षण
जो कुगुरु कुदेव कुधर्म सेव, पोषै चिर दर्शनमोह एव;
अंतर रागादिक धरैं जेह, बाहर धन-अंबरतैं सनेह. ९.
गाथा १० (पूर्वार्धा)
धारैं कुलिंग लहि महतभाव, ते कुगुरु जन्मजल-उपलनाव;
अन्वयार्थ(जो) जे (कुगुरु) खोटा गुरुनी (कुदेव) खोटा
देवनी अने (कुधर्म) खोटा धर्मनी (सेव) सेवा करे छे ते (चिर)
घणां लांबा समय सुधी (दर्शनमोह) मिथ्यादर्शन (एव) ज (पोषै)
पोषे छे. (जेह) जे (अंतर) अंतरमां (रागादिक) मिथ्यात्व-राग-
द्वेष आदि (धरैं) धारण करे छे अने (बाहर) बहारथी (धन