बाळतप छे, तेनाथी कदी साची निर्जरा थती नथी, पण
आत्मस्वरूपमां सम्यक् प्रकारे स्थिरता अनुसार जेटलो शुभ-
अशुभ इच्छानो अभाव थाय छे ते साची निर्जरा छे – सम्यक्तप
छे. पण मिथ्याद्रष्टि जीव एम मानतो नथी. पोतानी अनंत
ज्ञानादि शक्तिने भूले छे, पराश्रयमां सुख माने छे, शुभाशुभ
इच्छा अने पांच इन्द्रियोना विषयोनी चाहने रोकतो नथी. आ
निर्जरातत्त्वनी विपरीत श्रद्धा छे.
२. मोक्ष तत्त्वनी भूलः — पूर्ण निराकुळ आत्मिक सुखनी
प्राप्ति अर्थात् जीवनी संपूर्ण शुद्धता ते मोक्षनुं स्वरूप छे, अने
ते ज खरुं सुख छे, पण अज्ञानी तेम मानतो नथी.
मोक्ष थतां तेजमां तेज मळी जाय अथवा त्यां शरीर,
इन्द्रियो अने तेनां विषयो विना सुख केम होई शके ? त्यांथी
फरी अवतार लेवो पडे वगेरे. एम मोक्षदशामां निराकुळपणुं
मानतो नथी ते मोक्षतत्त्वनी विपरीत श्रद्धा छे.
३. अज्ञानः — अगृहीत मिथ्यादर्शन होय त्यां जे कंई ज्ञान
होय तेने अगृहीत मिथ्याज्ञान कहे छे, ते महान दुःखदाता छे.
ते उपदेशादि बाह्य निमित्तोना आलंबन वडे नवुं ग्रह्युं नथी
अनादिनुं छे, तेथी तेने अगृहीत (स्वाभाविक-निसर्गज)
मिथ्याज्ञान कहे छे. ७.
अगृहीत मिथ्याचारित्र(कुचारित्र)नुं लक्षण
इन जुत विषयनिमें जो प्रवृत्त, ताको जानो मिथ्याचरित्त;
यों मिथ्यात्वादि निसर्ग जेह, अब जे गृहीत सुनिये सु तेह. ८.
४० ][ छ ढाळा