छे अर्थात् कुगुरुनी श्रद्धा, भक्ति, पूजा, विनय तथा अनुमोदना
करवाथी गृहीत मिथ्यात्वनुं सेवन थाय छे अने तेथी जीव
अनंतकाळ भवभ्रमण करे छे. ९.
गाथा १० (उत्तरार्धा)
कुदेव(मिथ्यादेव)नुं स्वरुप
जो रागद्वेष मलकरि मलीन, वनिता गदादिजुत चिह्न चीन. १०.
गाथा ११ (पूर्वार्धा)
ते हैं कुदेव तिनकी जु सेव, शठ करत न तिन भवभ्रमण छेव;
अन्वयार्थः — (जे) जे (रागद्वेष) राग अने द्वेषरूपी
(मलकरि) मेलथी (मलीन) मलिन छे अने (वनिता) स्त्री तथा
(गदादिजुत) गदा वगेरे (चिह्न) चिह्नोथी (चीन) ओळखाय छे
(ते) ते (कुदेव) खोटा देव छे; (तिनकी) ते कुदेवनी (जु) जे (शठ)
मूर्ख (सेव) सेवा (करत) करे छे, (तिन) तेनुं (भवभ्रमण)
संसारमां भटकवुं (न छेव) मटतुं नथी.
भावार्थः — जे राग अने द्वेषरूपी मेलथी मेलां (रागीद्वेषी)
छे अने स्त्री, गदा, आभूषण वगेरेथी जेने ओळखी शकाय छे
ते ‘कुदेव’✽ कहेवाय छे. जे अज्ञानी आवा कुदेवोनी सेवा, (पूजा,
बीजी ढाळ ][ ४३
✽सुदेव=अरिहंत परमेष्ठी; देव-भवनवासी वगेरे देव.
कुदेव=हरि, हर आदि; अदेव-पीपळो, तुलसी, लकडबाबा वगेरे
कल्पित देव, जे कोई सरागी देव अथवा देव छे ते वंदन-पूजनने
योग्य नथी.