आकुळता वगरनुं (कहिये) कहेवाय छे. (आकुलता) आकुळता
(शिवमां) मोक्षमां (न) नथी (तातैं) तेथी (शिवमग) मोक्षमार्गमां
(लाग्यो) लागवुं (चहिये) जोईए. (सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरन)
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र ए त्रणेनी एकता ते (शिवमग) मोक्षनो
मार्ग छे, (सो) ते मोक्षमार्गनो (द्विविध) बे प्रकारथी (विचारो)
विचार करवो के, (जो) जे (सत्यारथरूप) वास्तविक स्वरूप छे
(सो) ते (निश्चय) निश्चय मोक्षमार्ग छे अने (कारण) जे निश्चय
मोक्षमार्गनुं निमित्त कारण छे (सो) तेने (व्यवहारो) व्यवहार
मोक्षमार्ग कहे छे.
भावश्रुतज्ञान थाय छे. अने निश्चयनय तथा व्यवहारनय ए
बन्ने सम्यक् श्रुतज्ञानना अवयवो (अंशो) छे, तेथी मिथ्याद्रष्टिने
निश्चय के व्यवहारनय होई शके ज नहीं, माटे ‘व्यवहारनय
प्रथम होय अने निश्चयनय पछी प्रगटे’ एम माननारने नयोना
स्वरूपनुं यथार्थ ज्ञान नथी.
विनानो निरपेक्षनय थयो; वळी प्रथम एकलो व्यवहारनय होय
तो अज्ञानदशामां सम्यग्नय मानवो पडे, पण