होई शके नहि, पण व्यवहाराभास के निश्चयाभासरूप मिथ्यानय
होई शके.
गुरु-शास्त्रनी श्रद्धा संबंधी रागमिश्रित विचारो अने मंद कषायरूप
शुभ भाव ते जीवने जे पूर्वे हतो तेने भूतनैगमनयथी
व्यवहारकारण कहेवामां आवे छे, (परमात्मप्रकाश अ. २, गाथा
१४नी टीका). वळी ते ज जीवने निश्चय सम्यग्दर्शननी भूमिकामां
शुभराग अने निमित्तो केवा प्रकारना होय, तेनुं सहचरपणुं
बताववा वर्तमान शुभ रागने व्यवहारमोक्षमार्ग कह्यो; तेम
कहेवानुं कारण ए छे के तेथी जुदा प्रकारना (विरुद्ध) निमित्तो
ते दशामां कोईने होई शके नहि; ए प्रकारे निमित्त-व्यवहार होय
छे तो पण ते खरुं कारण नथी.
आश्रये सुख प्रगट थई शके नहि.
मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३१५).
निरूपण कर्यो छे ते निश्चयमोक्षमार्ग छे; तथा ज्यां जे