Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 7 (Dhal 3).

< Previous Page   Next Page >


Page 66 of 205
PDF/HTML Page 88 of 227

 

background image
द्रव्य-भाव-नोकर्म रहित, निर्दोष अने पूज्य सिद्ध परमेष्ठी
‘निकल’ परमात्मा कहेवाय छे. ते अक्षय अनंत काल सुधी
अनंत सुखनो अनुभव कर्या करे छे. आ त्रणमां बहिरात्मापणुं
मिथ्यात्व सहित होवाथी हेय (छोडवा लायक) छे, तेथी
आत्महितेच्छुए तेने छोडीने अन्तरात्मा (सम्यग्द्रष्टि) बनीने
परमात्मापणुं प्राप्त करवुं जोईए, कारण के तेथी हंमेशां संपूर्ण
अने अनंत आनंद (मोक्ष)नी प्राप्ति थाय छे.
अजीव, पुद्गल, धार्म, अधार्म द्रव्यनुं लक्षण अने भेद
चेतनता बिन सो अजीव है, पंच भेद ताके हैं,
पुद्गल पंच वरन-रस, गंध-दो, फरस वसु जाके हैं;
जिय-पुद्गलको चलन-सहाई, धर्मद्रव्य अनरूपी,
तिष्ठत होय अधर्म सहाई, जिन बिन-मूर्ति निरूपी. ७.
अन्वयार्थजे (चेतनता बिन) चेतना रहित छे (सो)
ते (अजीव) अजीव छे; (ताके) ते अजीवना (पंचभेद) पांच
भेद छे (जाके पंच वरन-रस) जेना पांच वर्ण अने पांच
रस, (गंध-दो) बे गंध अने (वसु) आठ (फरस) स्पर्श (हैं)
होय छे ते पुद्गल द्रव्य छे. जीवने [अने] (पुद्गलको)
पुद्गलने (चलन सहाई) चालवामां निमित्त [अने]
(अनरूपी) अमूर्तिक छे ते (धर्म) धर्म द्रव्य छे तथा (तिष्ठत)
गतिपूर्वक स्थिति परिणामने प्राप्त [जीव अने पुद्गलने]
(सहाई) निमित्त (होय) होय छे ते (अधर्म) अधर्म द्रव्य छे.
(जिन) जिनेन्द्र भगवाने आ अधर्म द्रव्यने (बिन-मूर्ति)
६६ ][ छ ढाळा