शुभाशुभ विकार अने परद्रव्य साथे कर्ताबुद्धि, एकताबुद्धि,
होय ज छे तेथी ते जीव बहिरात्मा ज होय छे.
बहिरातमता हेय जानि तजि, अन्तर-आतम हूजै,
परमातमको ध्याय निरंतर, जो नित आनंद पूजै.
शरीर वगेरे नोकर्म, ए त्रण प्रकारना (कर्ममल) कर्मरूपी मैलथी
(वर्जित) रहित, (अमल) निर्मळ अने (महंता) महान (सिद्ध)
सिद्ध परमेष्ठी (निकल) निकल (परमातम) परमात्मा छे, ते
(अनंता) अपरिमित (शर्म) सुखने (भोगैं) भोगवे छे. आ
त्रणमां (बहिरातमता) बहिरात्मपणाने (हेय) छोडवायोग्य
(जानि) जाणीने अने (तजी) तेने तजीने (अन्तर-आतम)
अन्तरात्मा (हूजै) थवुं जोईए अने (निरंतर) सदा
(परमातमको) [निज] परमात्मपदनुं (ध्याय) ध्यान करवुं जोईए.
(जो) जे वडे (नित) नित्य अर्थात