दिगम्बर सौम्यमुद्राधारी थया छे, अने छठ्ठा प्रमत्तसंयत
गुणस्थानकना काळे २८ मूळगुणने अखंडित पाळे छे, तेओ तथा
जे अनंतानुबंधी तथा अप्रत्याख्यानीय बे कषायना अभाव सहित
सम्यग्द्रष्टि श्रावक छे ते मध्यमअंतरात्मा छे. अर्थात् छठ्ठा अने
पांचमा गुणस्थानवर्ती जीव मध्यम अंतरात्मा छे.✽
२. सम्यग्दर्शन विना कदी धर्मनी शरूआत थती नथी.
जेने निश्चयसम्यग्दर्शन नथी ते जीव बहिरात्मा छे. ३.
परमात्मा बे प्रकारे छेः १सकल अने २निकल (१) श्री
अरिहंत परमात्मा सकल (शरीर सहित) परमात्मा छे. (२)
सिद्ध परमात्मा ते निकल (अशरीरी) परमात्मा छे. तेओ बन्ने
सर्वज्ञ होवाथी लोक अने अलोक सहित सर्व पदार्थोनुं
त्रिकाळवर्ती संपूर्ण स्वरूप एक समयमां युगपत् (एकसाथे)
जाणनारा-देखनारा सर्वना ज्ञाता-द्रष्टा छे, ते उपरथी नक्की
थाय छे के — जेम सर्वज्ञनुं ज्ञान व्यवस्थित छे तेम तेना
ज्ञानना ज्ञेयो – सर्व द्रव्यो – छए द्रव्योनी त्रण काळनी क्रमबद्ध
पर्यायो निश्चित-व्यवस्थित छे, अने कोई पर्याय आडीअवळी
थती नथी, एम सम्यग्द्रष्टि जीव माने छे, तथा एवी मान्यता
✽सावयगुणेहिं जुत्ता, पमत्तविरदा य मज्झिमा होंति ।
श्रावकगुणैस्तु युक्ताः प्रमत्तविरताश्च मध्यमाः भवन्ति ।
अर्थः — श्रावकना गुणोथी युक्त अने प्रमत्तविरत मुनि मध्यम
अन्तरात्मा छे.[स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा १९६]
१.स=सहित, कल=शरीर, सकल एटले शरीर सहित.
२.नि=रहित, कल=शरीर, निकल एटले शरीर रहित.
६४ ][ छ ढाळा