जघन कहे अविरत समद्रष्टि, तीनों शिवमगचारी;
सकल निकल परमातम द्वैविध, तिनमें घातिनिवारी,
श्री अरिहन्त सकल परमातम, लोकालोक निहारी.
मध्यम अंतरात्मा छे तथा (देशव्रती) बे कषायना अभाव सहित
एवा पंचम गुणस्थानवर्ती सम्यग्द्रष्टि श्रावक (मध्यम) मध्यम
(अंतर-आतम) अंतरात्मा (है) छे अने (अविरत) व्रत रहित
(समद्रष्टि) सम्यग्द्रष्टि जीव (जघन) जघन्य अंतरात्मा (कहे)
कहेवाय छे. (तीनों) ए त्रणे (शिवमगचारी) मोक्षमार्ग पर
चालवावाळा छे. (सकल निकल) सकल अने निकलना भेदथी
(परमातम) परमात्मा (द्वैविध) बे प्रकारना छे, (तिनमें) तेमां
(घाति) चार घातिकर्मोने (निवारी) नाश करवावाळा (लोकालोक)
लोक अने अलोकने (निहारी) जाणवा-देखवावाळा (श्री अरिहंत)
अरिहंत परमेष्ठी (सकल) शरीरसहित (परमात्मा) परमात्मा छे.
तो ए शुद्धोपयोग वडे पोते पोताने अनुभवे छे, कोईने इष्ट-
अनिष्ट मानी राग-द्वेष करता नथी, हिंसादिरूप अशुभोपयोगनुं
तो अस्तित्व ज जेने रह्युं नथी एवी अंतरंगदशा सहित बाह्य