अने आत्माने एक माने तेने बहिरात्मा कहे छे, तेने अविवेकी
अथवा मिथ्याद्रष्टि पण कहे छे. जे शरीर अने आत्माने पोताना
भेदविज्ञानथी जुदा जुदा माने छे ते अंतरात्मा अर्थात
अंतरंग अने बहिरंग ए बन्ने प्रकारना परिग्रहथी रहित
सातमाथी बारमा गुणस्थानमां वर्तता शुद्धउपयोगी अने
आत्मध्यानी दिगम्बर मुनि उत्तम अंतरात्मा छे.