Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 4 (Dhal 3).

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छे ते भेदरूप छेरागसहित छे; तेथी ते व्यवहारसम्यग्दर्शन छे.
निश्चयमोक्षमार्गमां केवुं निमित्त होय ते बताववा अहीं त्रीजी
गाथा कही छे. पण तेनो एवो अर्थ नथी के निश्चयसमकित विना
कोईने पण व्यवहारसमकित होई शके.
जीवना भेद, बहिरात्मा अने उत्तम अंतरात्मानुं लक्षण
बहिरातम, अंतर-आतम, परमातम, जीव त्रिधा है,
देह-जीवको एक गिनें बहिरातम तत्त्वमुधा है;
उत्तम मध्यम जघन त्रिविधके अन्तर-आतम ज्ञानी,
द्विविध संग बिन शुध-उपयोगी, मुनि उत्तम निजध्यानी.
४.
अन्वयार्थ(बहिरातम) बहिरात्मा, (अन्तर-आतम)
अन्तरात्मा [अने] (परमातम) परमात्मा [ए प्रकारे] (जीव)
जीव (त्रिधा) त्रण प्रकारना (है) छे, (तेमां) (देह जीवको) शरीर
अने आत्माने (एक गिनै) एक माने छे (सो) ते (बहिरातम)
बहिरात्मा छे [अने ते बहिरात्मा] (तत्त्वमुधा) साचां तत्त्वोनो
अजाण अर्थात
् मिथ्याद्रष्टि छे. (आतमज्ञानी) आत्माने
परवस्तुओथी जुदो जाणी यथार्थ निश्चय करवावाळो (अन्तर-
आतम) अन्तरात्मा [कहेवाय छे, ते] (उत्तम) उत्तम (मध्यम)
मध्यम अने (जघन) जघन्य एम (त्रिविध) त्रण प्रकारना छे,
[तेमां] (द्विविध) अंतरंग अने बहिरंग ए बे प्रकारनां
(संग बिन) परिग्रह रहित (शुध-उपयोगी) शुद्ध-उपयोगी
(निजध्यानी) आत्मध्यानी (मुनि) दिगम्बर मुनि (उत्तम) उत्तम
अन्तरात्मा छे.
त्रीजी ढाळ ][ ६१