अजीवना पांच भेद छे
पुद्गलद्रव्य कहे छे. जे स्वयं चाले छे एवा जीव अने
पुद्गलने चालवामां निमित्तकारण होय छे ते धर्मद्रव्य छे अने
स्वयं (पोतानी मेळे) गतिपूर्वक स्थिर रहेलां जीव अने
पुद्गलने स्थिर रहेवामां जे निमित्तकारण छे ते अधर्मद्रव्य छे.
जिनेन्द्र भगवाने आ धर्म, अधर्म द्रव्यने तथा हवे पछी
कहेवामां आवशे ते आकाश अने काळ द्रव्यने अमूर्तिक
(इन्द्रिय अगोचर) कह्यां छे. ७.
नियत वर्तना, निशि-दिन सो, व्यवहारकाल परिमानो;
यों अजीव, अब आस्रव सुनिये, मन-वच-काय त्रियोगा,
मिथ्या अविरत अरु कषाय, परमाद सहित उपयोगा.
छ द्रव्योमां आवता ते धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकाय नामनां
बे अजीव द्रव्यो जाणवां.