Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 8 (Dhal 3).

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अमूर्तिक, (निरूपी) अरूपी कह्युं छे.
भावार्थजेमां चेतना (ज्ञान-दर्शन अथवा जाणवा-
देखवानी शक्ति) नथी होती तेने अजीव कहे छे. आ
अजीवना पांच भेद छे
पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश अने
काळ. जेमां रूप, रस, गंध, वर्ण अने स्पर्श होय छे तेने
पुद्गलद्रव्य कहे छे. जे स्वयं चाले छे एवा जीव अने
पुद्गलने चालवामां निमित्तकारण होय छे ते धर्मद्रव्य छे अने
स्वयं (पोतानी मेळे) गतिपूर्वक स्थिर रहेलां जीव अने
पुद्गलने स्थिर रहेवामां जे निमित्तकारण छे ते अधर्मद्रव्य छे.
जिनेन्द्र भगवाने आ धर्म, अधर्म द्रव्यने तथा हवे पछी
कहेवामां आवशे ते आकाश अने काळ द्रव्यने अमूर्तिक
(इन्द्रिय अगोचर) कह्यां छे. ७.
आकाश, काळ अने आuावनुं लक्षण अने भेद
सकल द्रव्यको वास जासमें, सो आकाश पिछानो,
नियत वर्तना, निशि-दिन सो, व्यवहारकाल परिमानो;
यों अजीव, अब आस्रव सुनिये, मन-वच-काय त्रियोगा,
मिथ्या अविरत अरु कषाय, परमाद सहित उपयोगा.
८.
अन्वयार्थ(जासमें) जेमां (सकल) सर्वे (द्रव्यको) द्रव्यनो
(वास) निवास छे (सो) ते (आकाश) आकाश द्रव्य (पिछानो)
धर्म अने अधर्मथी अहीं पुण्य अने पाप एम न समजवुं, पण
छ द्रव्योमां आवता ते धर्मास्तिकाय अने अधर्मास्तिकाय नामनां
बे अजीव द्रव्यो जाणवां.
६८ ][ छ ढाळा