हालत-पर्याय ते (शिव) मोक्ष कहेवाय छे, (इहिविध) आ प्रकारे
(जो) जे (तत्त्वनकी) सात तत्त्वोना भेद सहित (सरधा) श्रद्धा
करवी ते (व्यवहारी) व्यवहार (समकित) सम्यग्दर्शन छे.
(जिनेन्द्र) वीतराग, सर्वज्ञ अने हितोपदेशी (देव) साचा देव
(परिग्रह बिन) २४ परिग्रहथी रहित (गुरु) वीतराग गुरु
[तथा] (सारो) सारभूत (दयाजुत) अहिंसामय (धर्म) जैनधर्म
(येहु) आ बधाने (समकितको) सम्यग्दर्शननुं (कारण) निमित्त-
कारण (मान) जाणवुं जोईए. सम्यग्दर्शनने तेनां (अष्ट) आठ
(अंग-जुत) अंगो सहित (धारो) धारण करवुं जोईए.
शुद्ध अवस्था (पर्याय) प्रगट थाय छे तेने मोक्ष कहे छे. आ
अवस्था अविनाशी अने अनंत सुखमय छे, आ प्रकारे सामान्य
अने विशेषरूपथी सात तत्त्वोनी अचळ श्रद्धा करवी तेने
व्यवहार-सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन) कहे छे. जिनेन्द्रदेव, वीतरागी
(दिगम्बर जैन) गुरु अने जिनेन्द्रप्रणीत अहिंसामय धर्म पण
आ व्यवहार सम्यग्दर्शनना कारण छे एटले के ए त्रणनुं यथार्थ
श्रद्धान पण व्यवहारसम्यग्दर्शन कहेवाय छे. तेने नीचे जणावेला
आठ अंगो सहित धारण करवुं जोईए. व्यवहार समकितनुं
स्वरूप आगळ गाथा २-३ना भावार्थमां समजाव्युं छे.
निश्चयसमकित विना एकला व्यवहारने व्यवहारसमकित
कहेवातुं नथी. १०.