७४ ][ छ ढाळा
जाय छे तेवी रीते शुद्ध भावरूप गुप्ति वगेरे मारफत आत्मामां
कर्मोनुं आववुं रोकाई जाय छे ते.
४.निर्जरा – जेवी रीते वहाणमां आवेला पाणीमांथी थोडुं (कोई
वासणमां भरी) फेंकी देवामां आवे छे तेवी रीते निर्जरा द्वारा थोडां
कर्म आत्माथी अलग थई जाय छे ते.
५.मोक्ष – जेवी रीते वहाणमां आवेलुं बधुं पाणी काढी नांखवाथी
वहाण एकदम पाणी विनानुं थई जाय छे तेम आत्मामांथी बधां
कर्मो जुदां पडी जवाथी आत्मानी पूरेपूरी शुद्ध हालत (मोक्षदशा)
प्रगट थाय छे एटले के ते आत्मा मुक्त थई जाय छे. ९.
मोक्षनुं लक्षण, व्यवहारसम्यक्त्वनुं लक्षण तथा
कारण
सकल कर्मतैं रहित अवस्था, सो शिव, थिर सुखकारी,
इहिविध जो सरधा तत्त्वनकी, सो समकित व्यवहारी;
देव जिनेन्द्र, गुरु परिग्रह बिन, धर्म दयाजुत सारो,
येहु मान समकितको कारण, अष्ट-अंग-जुत धारो. १०.
अन्वयार्थः — (सकल कर्मतैं) बधा कर्मोथी (रहित) रहित