(षट्) छ (अनायतन)
रहित थईने (संवेगादिक) संवेग, अनुकंपा, आस्तिकय अने
प्रशममां (चित) मनने (पागो) लगाववुं जोईए. हवे समकितना
(अष्ट) आठ (अंग) अंग (अरु) अने (पचीसों दोष) पचीस
दोषोने (संक्षेपै) संक्षेपमां (कहिये) कहेवामां आवे छे, कारण के
(बिन जानेतैं) ते जाण्या विना (दोष) दोषोने (कैसे) केवी रीते
(तजिये) छोडीए, अने (गुननको) गुणोने केवी रीते (गहिये)
ग्रहण करीए?
सम्यक्त्वना अभिलाषी जीवे आ समकितना पचीस दोषोनो
त्याग करीने, ते भावनाओमां मन लगाववुं जोईए. हवे
सम्यक्त्वना आठ गुणो (अंगो) अने २५ दोषोनुं संक्षेपमां वर्णन
करवामां आवे छे; कारण के जाण्या वगर तथा समज्या वगर
दोषोने केवी रीते छोडी शकाय अने गुणोने केवी रीते ग्रहण करी
शकाय