मुनि-तन मलिन न देख घिनावै, तत्त्व - कुतत्त्व पिछानैं;
निज गुण अरु पर औगुण ढांके, वा निजधर्म बढावै,
कामादिक कर वृषतैं चिगते, निज-परको सु दिढावै.
इन गुणतैं विपरीत दोष वसु, तिनकों सतत खिपावै;
Chha Dhala-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 12-13 (poorvardh) (Dhal 3).
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