Chha Dhala (Hindi). Gatha: 16: samyaktvakee mahimA, samyagdrashtike anupatti sthAn tathA sarvottam sukh aur sarv dharmakA mool (Dhal 3).

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भावार्थ :जो विवेकी पच्चीस दोष रहित तथा आठ अंग
(आठ गुण) सहित सम्यग्दर्शन धारण करते हैं, उन्हें
अप्रत्याख्यानावरणीय कषायके तीव्र उदयमें युक्त होनेके कारण,
यद्यपि संयमभाव लेशमात्र नहीं होता; तथापि इन्द्रादि उनकी पूजा
अर्थात् आदर करते हैं । जिस प्रकार पानीमें रहने पर भी कमल
पानीसे अलिप्त रहता है; उसीप्रकार सम्यग्दृष्टि घरमें रहते हुए भी
गृहस्थदशामें लिप्त नहीं होता, उदासीन (निर्मोही) रहता है । जिस
प्रकार
वेश्याका प्रेम मात्र पैसेमें ही होता है, मनुष्य पर नहीं होता;
उसीप्रकार सम्यग्दृष्टिका प्रेम सम्यक्त्वमें ही होता है; किन्तु
गृहस्थपनेमें नहीं होता
तथा जिस प्रकार सोना कीचड़में पड़े रहने
पर भी निर्मल रहता है; उसीप्रकार सम्यग्दृष्टि जीव गृहस्थदशामें
रहने पर भी उसमें लिप्त नहीं होता; क्योंकि वह उसे
त्याज्य,
(त्यागने योग्य) मानता है ।
सम्यक्त्वकी महिमा, सम्यग्दृष्टिके अनुत्पत्ति स्थान तथा
सर्वोत्तम सुख और सर्व धर्मका मूल
प्रथम नरक विन षट् भू ज्योतिष वान भवन षंढ नारी
थावर विकलत्रय पशुमें नहिं, उपजत सम्यक्धारी ।।
तीनलोक तिहुँकाल माँहिं नहिं, दर्शन सो सुखकारी
सकल धर्मको मूल यही, इस बिन करनी दुखकारी ।।१६।।
यहाँ वेश्याके प्रेमसे मात्र अलिप्तताकी तुलना की गई है
विषयासक्तोऽपि सदा सर्वारम्भेषु वर्तमानोऽपि
मोहविलासः एषः इति सर्वं मन्यते हेयं ।।३४१।।(स्वामी कार्ति०)
रोगीको औषधिसेवन और बन्दीको कारागृह भी इसके दृष्टान्त हैं
तीसरी ढाल ][ ८१