Chha Dhala (Hindi). Gatha: 15: avrati samyagdrashtikee devo dwarA pooja aur gyaAnikeegruhathapanems apriti (Dhal 3).

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अव्रती सम्यग्दृष्टिकी देवों द्वारा पूजा और
गृहस्थपनेमें अप्रीति
दोषरहित गुणसहित सुधी जे, सम्यग्दरश सजैं हैं
चरितमोहवश लेश न संजम, पै सुरनाथ जजैं हैं ।।
गेही पै गृहमें न रचैं, ज्यों जलतैं भिन्न कमल है
नगरनारिकौ प्यार यथा, कादेमें हेम अमल है ।।१५।।
अन्वयार्थ :(जे) जो (सुधी) बुद्धिमान पुरुष [ऊपर
कहे हुए ] (दोष रहित) पच्चीस दोष रहित [तथा ] (गुणसहित)
निःशंकादि आठ गुणों सहित (सम्यग्दरश) सम्यग्दर्शनसे (सजैं हैं)
भूषित हैं [उन्हें ] (चरितमोहवश) अप्रत्याख्यानावरणीय
चारित्रमोहनीय कर्मके उदयवश (लेश) किंचित् भी (संजम) संयम
(न) नहीं है (पै) तथापि (सुरनाथ) देवोंके स्वामी इन्द्र [उनकी ]
(जजैं हैं) पूजा करते हैं; [यद्यपि वे ] (गेही) गृहस्थ हैं (पै) तथापि
(गृहमें) घरमें (न रचैं) नहीं राचते । (ज्यों) जिस प्रकार (कमल)
कमल (जलतैं) जलसे (भिन्न) भिन्न है [तथा ] (यथा) जिस प्रकार
(कादेमें)कीचड़में (हेम) सुवर्ण (अमल है) शुद्ध रहता है,
[उसीप्रकार उनका घरमें ] (नगरनारिकौ) वेश्याके (प्यार यथा)
प्रेमकी भाँति (प्यार) प्रेम [होता है । ]
८० ][ छहढाला