Chha Dhala (Hindi). Gatha: 14: chhah anAyatan tathA tin mooDhatA dosh (Dhal 3).

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करता है तो यह मद सम्यग्दर्शनके आठ दोष बनकर उसे दूषित
करते हैं । (छन्द १३ का उत्तरार्द्ध तथा १४ का पूर्वार्द्ध) ।
छन्द १४ (उत्तरार्द्ध)
छह अनायतन तथा तीन मूढ़ता दोष
कुगुरु-कुदेव-कुवृषसेवककी नहिं प्रशंस उचरै है
जिनमुनि जिनश्रुत विन कुगुरादिक, तिन्हैं न नमन करै है ।।१४।।
अन्यवार्थ–[सम्यग्दृष्टि जीव ] (कुगुरु-कुदेव-कुवृष-
सेवककी,) कुगुरु, कुदेव और कुधर्म-सेवककी (प्रशंस) प्रशंसा
(नहिं उचरै है) नहीं करता । (जिन) जिनेन्द्रदेव (मुनि) वीतरागी
मुनि [और ] (जिनश्रुत) जिनवाणी (विन)के अतिरिक्त [जो ]
(कुगुरादि) कुगुरु, कुदेव, कुधर्म हैं (तिन्हें) उन्हें (नमन) नमस्कार
(न करै है) नहीं करता ।
भावार्थ :कुगुरु, कुदेव, कुधर्म; कुगुरु सेवक, कुदेव
सेवक तथा कुधर्म सेवक–यह छह अनायतन (धर्मके अस्थान)
दोष कहलाते हैं । उनकी भक्ति, विनय और पूजनादि तो दूर
रही; किन्तु सम्यग्दृष्टि जीव उनकी प्रशंसा भी नहीं करता;
क्योंकि उनकी प्रशंसा करनेसे भी सम्यक्त्वमें दोष लगता है ।
सम्यग्दृष्टि जीव जिनेन्द्र देव, वीतरागी मुनि और जिनवाणीके
अतिरिक्त कुदेव और कुशास्त्रादिको (भय, आशा, लोभ और
स्नेह आदिके कारण भी) नमस्कार नहीं करता; क्योंकि उन्हें
नमस्कार करने मात्रसे भी सम्यक्त्व दूषित हो जाता है । कुगुरु-
सेवा, कुदेव-सेवा तथा कुधर्म-सेवा–ये तीन भी सम्यक्त्वके
मूढ़ता नामक दोष हैं
।।१४।।
तीसरी ढाल ][ ७९