(बलकौ) शक्तिका (मद भानै) अभिमान नहीं करता, (तपकौ)
तपका (मद न) अभिमान नहीं करता, (जु) और (प्रभुताकौ)
ऐश्वर्य, बड़प्पनका (मद न करै) अभिमान नहीं करता (सो) वह
(निज) अपने आत्माको (जानै) जानता है । [यदि जीव उनका ]
(मद) अभिमान (धारै) रखता है तो (यही) ऊपर कहे हुए मद
(वसु) आठ (दोष) दोष रूप होकर (समकितकौ) सम्यक्त्वको-
सम्यक्दर्शनको (मल) दूषित (ठानै) करते हैं ।
(१) पिता आदि पितृपक्षमें राजादि प्रतापी पुरुष होनेसे ‘‘मैं
(४) अपनी विद्याका अभिमान करना सो ज्ञान-मद है ।
(५) अपनी धन-सम्पत्तिका अभिमान करना सो धन-मद है ।
(६) अपनी शारीरिक शक्तिका गर्व करना सो बल-मद है ।
(७) अपने व्रत-उपवासादि तपका गर्व करना सो तप-मद है ।
(८) अपने बड़प्पन और आज्ञाका गर्व करना सो प्रभुता-मद है ।
नहीं करता, वही आत्माका ज्ञान कर सकता है । यदि उनका गर्व