छन्द १३ (उत्तरार्द्ध)
मद नामक आठ दोष
पिता भूप वा मातुल नृप जो, होय न तौ मद ठानै ।
मद न रूपकौ, मद न ज्ञानकौ, धन-बलकौ मद भानै ।।१३।।
छन्द १४ (पूर्वार्द्ध)
तपकौ मद न, मद जु प्रभुताकौ, करै न सो निज जानै ।
मद धारैं तौ यही दोष वसु, समकितकौ मल ठानै ।।
अन्वयार्थ : – [जो जीव ] (जो) यदि (पिता) पिता
आदि पितृपक्षके स्वजन (भूप) राजादि (होय) हों (तौ) तो (मद)
अभिमान (न ठानै) नहीं करता, [यदि ] (मातुल) मामा आदि
मातृपक्षके स्वजन (नृप) राजादि (होय) हों तो (मद) अभिमान
(न) नहीं करता, (ज्ञानकौ) विद्याका (मद न) अभिमान नहीं
तीसरी ढाल ][ ७७