कर्मभूमिके तिर्यंच भी नहीं होते । कदाचित् ✽नरकमें जायें तो पहले
नरकसे नीचे नहीं जाते । तीनलोक और तीनकालमें सम्यग्दर्शनके
समान सुखदायक अन्य कोई वस्तु नहीं है । यह सम्यग्दर्शन ही
सर्व धर्मोंका मूल है । इसके अतिरिक्त जितने क्रियाकाण्ड हैं वे
सब दुःखदायक हैं ।।१६।।
सम्यग्दर्शनके बिना ज्ञान और चारित्रका मिथ्यापना
मोक्षमहलकी परथम सीढ़ी, या बिन ज्ञान-चरित्रा ।
सम्यक्ता न लहै, सो दर्शन धारो भव्य पवित्रा ।।
‘‘दौल’’ समझ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवै ।
यह नरभव फि र मिलन कठिन है, जो सम्यक् नहिं होवै ।।१७।।
✽ऐसी दशामें सम्यग्दृष्टि प्रथम नरकके नपुंसकोंमें भी उत्पन्न होता है;
उनसे भिन्न अन्य नपुंसकोंमें उसकी उत्पत्ति होनेका निषेध है ।
टिप्पणी–जिस प्रकार श्रेणिक राजा सातवें नरककी आयुका बन्ध करके
फि र सम्यक्त्व को प्राप्त हुए थे, उससे यद्यपि उन्हें नरकमें तो जाना
ही पड़ा; किन्तु आयु सातवें नरकसे घटकर पहले नरककी ही
रही । इस प्रकार जो जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त करनेसे पूर्व तिर्यंच
अथवा मनुष्य आयुका बन्ध करते हैं, वे भोगभूमि में जाते हैं;
किन्तु कर्मभूमिमें तिर्यंच अथवा मनुष्यरूपमें उत्पन्न नहीं होते ।
तीसरी ढाल ][ ८३