चौथी ढाल
सम्यग्ज्ञानका लक्षण और उसका समय
सम्यक् श्रद्धा धारि पुनि, सेवहु सम्यग्ज्ञान ।
स्व-पर अर्थ बहुधर्मजुत, जो प्रगटावन भान ।।१।।
अन्यवार्थ–(सम्यक् श्रद्धा) सम्यग्दर्शन (धारि) धारण करके
(पुनि) फि र (सम्यग्ज्ञान) सम्यग्ज्ञानका (सेवहु) सेवन करो; [जो
सम्यग्ज्ञान ] (बहु धर्मजुत) अनेक धर्मात्मक (स्व-पर अर्थ) अपना
और दूसरे पदार्थोंका (प्रगटावन) ज्ञान करानेमें (भान) सूर्य समान
है ।
भावार्थ : – सम्यग्दर्शन सहित सम्यग्ज्ञानको दृढ़ करना
चाहिये । जिस प्रकार सूर्य समस्त पदार्थोंको तथा स्वयं अपनेको
यथावत् दर्शाता है; उसीप्रकार जो अनेक धर्मयुक्त स्वयं अपनेको
(आत्माको) तथा पर पदार्थोंको१ ज्योंका त्यों बतलाता है, उसे
सम्यग्ज्ञान कहते हैं ।
९४ ][ छहढाला
१. स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकं ज्ञान प्रमाणम् ।
(प्रमेयरत्नमाला, प्र. उ. सूत्र- १)