सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानमें अन्तर
(रोला छन्द)
सम्यक् साथै ज्ञान होय, पै भिन्न अराधौ ।
लक्षण श्रद्धा जान, दुहूमें भेद अबाधौ ।।
सम्यक् कारण जान, ज्ञान कारज है सोई ।
युगपत् होते हू, प्रकाश दीपकतैं होई ।।२।।
अन्वयार्थ : – (सम्यक् साथै) सम्यग्दर्शनके साथ
(ज्ञान) सम्यग्ज्ञान (होय) होता है । (पै) तथापि [उन दोनोंको ]
(भिन्न) भिन्न (अराधौ) समझना चाहिये; क्योंकि (लक्षण) उन
दोनोंके लक्षण [क्रमशः ] (श्रद्धा) श्रद्धा करना और (जान) जानना
है तथा (सम्यक्) सम्यग्दर्शन (कारण) कारण है और (ज्ञान)
सम्यग्ज्ञान (कारज) कार्य है । (सोई) यह भी (दुहूमें) दोनोंमें
(भेद) अन्तर (अबाधौ) निर्बाध है । [जिसप्रकार ] (युगपत्) एक
साथ (होते हू) होने पर भी (प्रकाश) उजाला (दीपकतैं) दीपककी
ज्योतिसे (होई) होता है उसीप्रकार ।
भावार्थ : – सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान यद्यपि एकसाथ
प्रगट होते हैं; तथापि वे दोनों भिन्न-भिन्न गुणोंकी पर्यायें हैं ।
चौथी ढाल ][ ९५