अतिरिक्त (और कछु) अन्य कोई वस्तु (अदत्ता) बिना दिये
(नाहिं) नहीं (ग्रहे) लेना [उसे अचौर्याणुव्रत कहते हैं ] (निज)
अपनी (वनिता विन) स्त्रीके अतिरिक्त (सकल नारि सों) अन्य
सर्व स्त्रियोंसे (विरत्ता) विरक्त (रहे) रहना [वह ब्रह्मचर्याणुव्रत
है ] (अपनी) अपनी (शक्ति विचार) शक्तिका विचार करके
(परिग्रह) परिग्रह (थोरो) मर्यादित (राखै) रखना [सो
(२) प्रमाद और कषायमें युक्त होनेसे जहाँ प्राणघात किया जाता है वहीं
हिंसाका दोष लगता है; जहाँ वैसा कारण नहीं है, वहाँ प्राणघात
होने पर भी हिंसाका दोष नहीं लगता । जिस प्रकार–प्रमादरहित
मुनि गमन करते हैं; वैद्य, डॉक्टर करुणाबुद्धिपूर्वक रोगीका उपचार
करते हैं; वहाँ सामनेवालेका प्राणघात होने पर भी हिंसाका दोष
नहीं है ।
(३) निश्चयसम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक पहले दो कषायोंका अभाव हुआ हो
उस जीवको सच्चे अणुव्रत होते हैं । जिसे निश्चयसम्यग्दर्शन न हो
उसके व्रतको सर्वज्ञदेवने बालव्रत (अज्ञानव्रत) कहा है ।
चौथी ढाल ][ १११