Chha Dhala (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 112 of 192
PDF/HTML Page 136 of 216

 

background image
परिग्रहपरिमाणाणुव्रत है ] (दस दिश) दस दिशाओंमें (गमन)
जाने-आनेकी (प्रमाण) मर्यादा (ठान) रखकर (तसु) उस (सीम)
सीमाका (न नाखै) उल्लंघन न करना [सो दिग्व्रत है ] ।
भावार्थ :जन-समुदायके लिये जहाँ रोक न हो तथा
किसी विशेष व्यक्तिका स्वामित्व न हो–ऐसी पानी तथा मिट्टी
जैसी वस्तुके अतिरिक्त परायी वस्तु (जिस पर अपना स्वामित्व
न हो) उसके स्वामीके दिये बिना न लेना [तथा उठाकर दूसरेको
न देना ] उसे अचौर्याणुव्रत कहते हैं । अपनी विवाहित स्त्रीके सिवा
अन्य सर्व स्त्रियोंसे विरक्त रहना सो ब्रह्मचर्याणुव्रत है । [पुरुषको
चाहिये कि अन्य स्त्रियोंको माता, बहिन और पुत्री समान माने,
तथा स्त्रीको चाहिये कि अपने स्वामीके अतिरिक्त अन्य पुरुषोंको
पिता, भाई तथा पुत्र समान समझे । ]
अपनी शक्ति और योग्यताका ध्यान रखकर जीवनपर्यन्तके
लिये धन-धान्यादि बाह्य-परिग्रहका परिमाण (मर्यादा) बाँधकर
उससे अधिककी इच्छा न करे उसे
परिग्रहपरिमाणाणुव्रत कहते
हैं ।
टिप्पणी–(१) यह पाँच (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और
परिग्रहपरिमाण) अणुव्रत हैं हिंसादिकको लोकमें भी पाप माना
जाता है; उनका इन व्रतोंमें एकदेश (स्थूलरूपसे) त्याग किया
गया है; इसीकारण वे अणुव्रत कहलाते हैं
(२) निश्चयसम्यग्दर्शन-ज्ञानपूर्वक प्रथम दो कषायोंका अभाव हुआ हो
उस जीवको सच्चे अणुव्रत होते हैं जिसे निश्चयसम्यग्दर्शन न हो
उसके व्रतोंको सर्वज्ञदेवने बालव्रत (अज्ञानव्रत) कहा है
११२ ][ छहढाला