Chha Dhala (Hindi). Gatha: 12: deshavrat (deshavagAshik) nAmak gunvratkA lakShan (Dhal 4),13: anarth dand vratke bhed aur unkA lakShan (Dhal 4).

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दसों दिशाओंमें आने-जानेकी मर्यादा निश्चित करके
जीवनपर्यन्त उसका उल्लंघन न करना सो दिग्व्रत है । दिशाओंकी
मर्यादा निश्चित की जाती है; इसलिये उसे दिग्व्रत कहा जाता है ।
देशव्रत (देशावगाशिक) नामक गुणव्रतका लक्षण
ताहूमें फि र ग्राम गली, गृह बाग बजारा
गमनागमन प्रमाण ठान अन, सकल निवारा ।।१२।।
(पूर्वार्द्ध)
अन्वयार्थ :(फि र) फि र (ताहूमें) उसमें [किन्हीं
प्रसिद्ध-प्रसिद्ध ] (ग्राम) गाँव, (गली) गली, (गृह) मकान, (बाग)
उद्यान तथा (बजार) बाजार तक (गमनागमन) जाने-आनेका
(प्रमाण) माप (ठान) रखकर (अन) अन्य (सकल) सबका
(निवारा) त्याग करना [उसे देशव्रत अथवा देशावगाशिक व्रत
कहते हैं । ]
भावार्थ :दिग्व्रतमें जीवनपर्यन्त की गई जाने-आनेके
क्षेत्रकी मर्यादामें भी (घड़ी, घण्टा, दिन, महीना आदि कालके
नियमसे) किसी प्रसिद्ध ग्राम, मार्ग, मकान तथा बाजार तक जाने-
आनेकी मर्यादा करके उससे आगेकी सीमामें न जाना सो देशव्रत
कहलाता है ।। ११-१२।। (पूर्वार्द्ध)
अनर्थदंडव्रतके भेद और उनका लक्षण
काहूकी धनहानि, किसी जय हार न चिन्तै
देय न सो उपदेश, होय अघ वनज-कृषी तैं ।।१२।।
(उत्तरार्द्ध)
चौथी ढाल ][ ११३