द्वारा उस त्रिकाली शुद्ध अखण्ड चैतन्यस्वरूप आत्माको ‘निश्चय’
कहा जाता है, आत्माका वह त्रिकाली सामान्यस्वभाव
द्रव्यार्थिकनयसे आत्माका स्वरूप है, उस त्रैकालिक शुद्धताकी
ओर उन्मुखतासे जीवकी जो शुद्ध पर्याय प्रगट होती है उसे
निश्चयनयसे मोक्षमार्ग कहा जाता है फि र भी वह आत्माका
पर्याय (अंश-भेद) होनेसे उसे ‘व्यवहार’ कहा जाता है, वह
सद्भुतव्यवहार है; और अपनी वर्तमान पर्यायमें जो विकारका
अंश रहता है वह पर्याय(अंश-भेद) असद्भूतव्यवहारनयका विषय
है। असद्भुतव्यवहार जीवका परमार्थस्वरूप न होनेसे दूर हो
सकता है और इसलिए निश्चयनयसे वह जीवका स्वरूप नहीं
है
मानते हैं और व्यवहार करते-करते भविष्यमें निश्चय (शुद्धभाव