Chha Dhala (Hindi). Anya vishay.

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उसका सच्चा स्वरूप यहाँ संक्षेपमें दिया जाता है
सम्यग्दृष्टि जीवको निश्चय (शुद्ध) और व्यवहार (शुभ)
ऐसी चारित्रकी मिश्र पर्याय निचली दशामें एक ही समय होती
हैं। वह साधकजीवको नीचली दशामें जो शुभराग सहित चारित्र
होता है उसको सरागचारित्र या व्यवहार चारित्र भी कहा गया
है । लेकिन उसमें जो शुद्धिका अंश है वह उपली शुद्धिरूप
निश्चय वीतराग चारित्रका कारण होनेसे शास्त्रोंमें उस शुद्धिके
साथ वर्तते रागको भी उपचारसे उपली शुद्धिका कारण
व्यवहारसे कहा जाता है । क्योंकि उस जीवको अल्प समयमें
शुभभावरूप कचाश दूर होकर पूर्णशुद्धता प्रगट होती है।
इस अपेक्षाको लक्षमें रखकर व्यवहार साधक तथा निश्चय
साध्य
ऐसा पर्यायार्थिकनयसे कहा जाता है, उसका अर्थ ऐसा
है कि सम्यग्दृष्टिकी पर्यायमेंसे शुभरूप अशुद्धता दूर होकर
क्रमशः शुद्धता होती जाती है। यह दोनों पर्यायें होनेसे वह
पर्यायार्थिकनयका विषय है। इस ग्रन्थमें कुछ स्थानों पर निश्चय
और व्यवहार शब्दोंका प्रयोग किया गया है, वहाँ उनका अर्थ
इसीप्रकार समझना चाहिए। व्यवहार (शुभभाव)का व्यय वह
साधक और निश्चय (शुद्धभाव)का उत्पाद वह साध्य
ऐसा
उनका अर्थ होता है; उसे संक्षेपमें ‘‘व्यवहार साधक और निश्चय
साध्य’’
ऐसा पर्यायार्थिकनयसे कहा जाता है।
अन्य विषय
इस ग्रन्थमें बहिरात्मा, अन्तरात्मा तथा परमात्मा आदि
विषयोंका स्वरूप दिया गया है। बहिरात्मा मिथ्यादृष्टिका दूसरा
नाम है; क्योंकि बाह्य संयोग-वियोग, शरीर, राग, देव-गुरु-
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