Chha Dhala (Hindi). Pathakose nivedan.

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शास्त्र आदिसे अपनेको परमार्थतः लाभ होता हैऐसा वह
मानता है। अन्तरात्मा सम्यग्दृष्टिका दूसरा नाम है; क्योंकि वह
मानता है कि अपने अन्तरसे ही अर्थात् अपने त्रैकालिक शुद्ध
चैतन्यस्वरूपके आश्रयसे ही अपनेको लाभ हो सकता है।
परमात्मा वह आत्माकी सम्पूर्ण शुद्ध दशा है। इनके अतिरिक्त
अन्य अनेक विषय इस ग्रन्थमें लिए गये हैं; उन सबको
सावधानीपूर्वक समझना आवश्यक है।
पाठकोंसे निवेदन
पाठकोंको इस ग्रन्थका सूक्ष्मदृष्टिसे अध्ययन करना
चाहिए; क्योंकि सत्शास्त्रका धर्मबुद्धिपूर्वक अभ्यास सम्यग्दर्शनका
कारण है। इसके उपरान्त शास्त्राभ्यासमें निम्नोक्त बातोंका ध्यान
रहना चाहिये :
(१) सम्यग्दर्शनसे ही धर्मका प्रारम्भ होता है।
(२) सम्यग्दर्शन प्राप्त किये बिना किसी भी जीवको सच्चे व्रत,
सामायिक, प्रतिक्रमण, तप, प्रत्याख्यानादि नहीं होते; क्योंकि वह
क्रिया प्रथम पाँचवें गुणस्थानमें शुभभावरूपसे होती है।
(३) शुभभाव ज्ञानी और अज्ञानी दोनोंको होता है; किन्तु
अज्ञानी उससे धर्म होगा, हित होगा ऐसा मानता है और ज्ञानीकी
दृष्टिमें वह हेय होनेसे वह उससे कदापि हितरूप धर्मका होना
नहीं मानता।
(४) इससे ऐसा नहीं समझना कि धर्मीको शुभभाव होता
ही नहीं; किन्तु वह शुभभावको धर्म अथवा उससे क्रमशः धर्म
होगा ऐसा नहीं मानता; क्योंकि अनन्त वीतरागदेवोंने उसे बन्धका
कारण कहा है।
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