Chha Dhala (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 216

 

background image
(५) एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका कुछ कर नहीं सकता; उसे
परिणमित नहीं कर सकता, प्रेरणा नहीं कर सकता, लाभ-हानि
नहीं कर सकता, उस पर प्रभाव नहीं डाल सकता, उसकी
सहायता या उपकार नहीं कर सकता; उसे मार या जिला नहीं
सकता
ऐसी प्रत्येक द्रव्य-गुण-पर्यायकी सम्पूर्ण स्वतंत्रता अनन्त
ज्ञानियोंने पुकार-पुकार कर कही है।
(६) जिनमतमें तो ऐसी परिपाटी है कि प्रथम सम्यक्त्व
और फि र व्रतादि होते हैं। अब, सम्यक्त्व तो स्व-परका श्रद्धान्
होने पर होता है, तथा वह श्रद्धान द्रव्यानुयोगका अभ्यास करनेसे
होता है। इसलिए प्रथम द्रव्यानुयोगके अनुसार श्रद्धान करके
सम्यग्दृष्टि बनना चाहिए।
(७) पहले गुणस्थानमें जिज्ञासु जीवोंको शास्त्राभ्यास,
अध्ययनमनन, ज्ञानी पुरुषोंका धर्मोपदेशश्रवण, निरन्तर उनका
समागम, देवदर्शन, पूजा, भक्ति, दान आदि शुभभाव होते हैं,
किन्तु पहले गुणस्थानमें सच्चे व्रत, तप आदि नहीं होते।
ऊपरी दृष्टिसे देखनेवालोंको निम्नोक्त दो शंकाएँ होनेकी
सम्भावना है
(१) ऐसे कथन सुनने या पढ़नेसे लोगोंको अत्यन्त हानि
होना सम्भव है। (२) इस समय लोग कुछ व्रत, प्रत्याख्यान,
प्रतिक्रमणादिक क्रियाएँ करते हैं; उन्हें छोड़ देंगे।
उसका स्पष्टीकरण यह है :
सत्यसे किसी भी जीवको हानि होगीऐसा कहना ही
बड़ी भूल है, अथवा असत् कथनसे लोगोंको लाभ माननेके बराबर
है, सत्का श्रवण या अध्ययन करनेसे जीवोंको कभी हानि हो ही
(15)