(सामायिक) सामायिक (करिये) करना [सो सामायिक-शिक्षाव्रत
है; ] (परव चतुष्टयमांहि) चार पर्वके दिनोंमें (पाप) पापकार्योंको
छोड़कर (प्रोषध) प्रोषधोपवास (धरिये) करना [सो प्रोषध-उपवास
शिक्षाव्रत है; ] (भोग) एक बार भोगा जा सके ऐसी वस्तुओंका
तथा (उपभोग) बारम्बार भोगा जा सके ऐसी वस्तुओंका
(नियमकरि) परिमाण करके-मर्यादा रखकर (ममत) मोह (निवारै)
छोड़ दे [सो भोग-उपभोगपरिमाणव्रत है; ] (मुनिको) वीतरागी
मुनिको (भोजन) आहार (देय) देकर (फे र) फि र (निज आहारै)
स्वयं भोजन करे [सो अतिथिसंविभागव्रत कहलाता है । ]
शिक्षाव्रत है । १। प्रत्येक अष्टमी तथा चतुर्दशीके दिन कषाय और
व्यापारादि कार्योंको छोड़कर (धर्मध्यानपूर्वक) प्रोषधसहित उपवास
करना सो प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत कहलाता है । २। परिग्रहपरिमाण-
अणुव्रतमें निश्चय की हुई भोगोपभोगकी वस्तुओंमें जीवनपर्यंतके
लिये अथवा किसी निश्चित समयके लिये नियम करना सो
भोगोपभोगपरिमाण शिक्षाव्रत कहलाता है । ३। निर्ग्रंथ मुनि आदि
सत्पात्रोंको आहार देनेके पश्चात् स्वयं भोजन करना सो
अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत कहलाता है ।। १४।।